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W.H.O.’S -Pills For Doubt

विश्व स्वास्थ्य संगठन से अपील है, कि वो ” संदेह” का टीका बनवाए ।

सुबह की आपाधापी  में एक समाचार ने  ध्यानाकर्षण किया, कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मलेरिया का टीका बनवा दिया है, और यह मलावी देश में एस्तेमाल किया जा रहा है ।

जोकि कारग़र है।


तभी एक शोषित पति बोला,” भगवान एक ऐसा  टीका  शक के लिए भी बनवा देते“।बीवी ने तीकी अवाज़ में कहा  ओ गोड़ ,प्लीस ! 

कल रात के सब्जी थेले मे आलू  नहीं होने के बाद कारण, आभा द्वारा बिठाई गयी जॉच कमीशन के सामने अभय को काफी सारी कसमें खाने पड़ी थी। 

आभा का सवाल  था। आखिर क्यू ? पूरे दस साल से मना करने के बाद । आज ही आलू क्यू बंद हुआ? 

सिकुड़े हुए माथे और प्रश्नचिन्ह वाली ऑखो के साथ अभय निरुतर था।

आभा का अगला सवाल -अखिर क्या ही करते हो पूरा दिन मोबाइल मे चिपक के?अभय ने कहा कि, “तुम्हारी दुआ से टिकटोक भी बंद होने के कगार पर है”।


अभय ने कहा खिसिया के “अगर इतना भी भरोसा नहीं है ।तो प्रेम विवाह क्यू किया था? आभा ” वो तो तुम किसी और  से करने को राज़ी हो गए थे।  शादी की तैयारी पूरी थी, मंडप से वापस ले आई हूँ तुम्हे ।


तब भरोसा क्यू नहीं करती हो?   

आभा, आज मंद मंद मुस्कारते हुए ,सब्जी थेले मे हरे -भरे नेनुए देख के बोली? सही बताओ “किसके निर्देशों का पालन कर रहे हो आज कल?” 

अभय, विश्व स्वास्थ्य संगठन को पत्र लिखकर “शंका के टीके की मांग करने जा रहा है”?

2 replies on “W.H.O.’S -Pills For Doubt”

amazing :), the issue of adjective for current scenario & feeling is really making sense and making more humorous, the creativity of writer is outstanding, best line “कल रात के सब्जी थेले मे आलू नहीं होने के बाद कारण, आभा द्वारा बिठाई गयी जॉच कमीशन के सामने अभय को काफी सारी कसमें खाने पड़ी थी। ”
looking forward to more such interesting short stories 🙂

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